Kahena galat to chupana
shayarisahara
कहना गलत तो छुपना सही सही .
जालिम कहा जो तू ने बताना सही सही..
मैंहैरबा हो के बुलालो मुझे चाहो जिस वक़्त.
में गया वक़्त नही हु की फिर ना आसकु..
रात है सन्नाटा है वहा कोई ना हो गया .
उनके दर ओ दीवार ग़ालिब चलो चूम के आते हैं..
मुद्दत। हुई है। यार को मेहमान कहे हुए.
जोशे जुनु से बज़मे चराग किये हुए..
सजदे तो सब ने किये तेरा नया अंदाज़ है.
तूने वो सजदा। किया जिस पर अज़ीज़ को नाज़ है..
नह समझोगे तो मिट जाओगे जहाँ से.
तुम्हारी दास्तान भी नह होगी दास्तानों में..
इंकार में वह लज्जत ,इकरार में कहा है.
बढ़ता है शौक़"जालिम"तेरे नही नही मे..
हम ने माना के और जुल्म ना करोगे .
लेकिन खाख हो जायेंगे हम, तुम को खबर होने तक..
उग रहा है दरो दीवार से सब्ज़ ग़ालिब.
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Dosto aap ko shayari kaisi lagi comment kar ke jaror bataye...
Dosto galat. Sabso ka paryog. Na kare